हल्द्वानी के विरखम
बिठोरिया, हल्द्वानी के विरखम मध्य हिमालय (कुमाऊँ क्षेत्र) प्राचीन एवं मध्यकालीन प्रस्तर स्थापत्य कला के लिए प्रसिद्ध है। बैजनाथ-गरुड़, द्वाराहाट, बागेश्वर, कटारमल, जागेश्वर, मोहली-दुगनाकुरी, थल, वृद्धभुवनेश्वर-बेरीनाग, जाह्नवी नौला-गंगोलीहाट तथा बालेश्वर-चंपावत आदि मंदिर समूह प्राचीन और मध्यकालीन कुमाउनी मंदिर स्थापत्य कला के उत्कृष्ट उदाहरण हैं। मंदिर स्थापत्य कला के साथ-साथ मध्य हिमालय में मूर्ति कला का भी विकास हुआ। देव एवं मानव मूर्तियों के अतिरिक्त यहाँ मूर्ति कला के एक विशिष्ट स्वरूप का विकास हुआ, जिसे स्तम्भ मूर्ति कला कह सकते हैं। स्थानीय लोग पाषाण स्तम्भ की इन मूर्तियों को ‘विरखम’ कहते हैं। उत्तराखण्ड के प्राचीन और मध्य कालीन शासकों ने स्थान-स्थान पर मंदिर और नौला के साथ विरखम भी स्थापित करवाये। बिठोरिया, हल्द्वानी के विरखम भी कुमाऊँ के प्राचीन इतिहास के महत्वपूर्ण धरोहर हैं । विरखम क्या है? जन साधारण के अनुसार वीर के प्रस्तर स्तम्भ को विरखम कहा जाता है। ‘‘कुमाउनी बोली का विरखम शब्द हिन्दी भाषा के वीर स्तम्भ का तद्भव है, जो वीर तथा साहसी व्यक्ति की स्मृति में स्थापित कि