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गंगोली का राजनीतिक भूगोल : एक ऐतिहासिक परिदृश्य-

गंगोली का राजनीतिक भूगोल : एक ऐतिहासिक परिदृश्य-      कुमाऊँ का ‘गंगोली’ क्षेत्र भी एक विशिष्ट सांस्कृतिक और भौगोलिक क्षेत्र है। इस विशिष्ट भौगोलिक क्षेत्र को सरयू-पूर्वी रामगंगा का अंतस्थ क्षेत्र भी कह सकते हैं। वर्तमान में गंगोली का मध्य-पूर्व और दक्षिणी क्षेत्र पिथौरागढ़ तथा मध्य-पश्चिमी और उत्तरी क्षेत्र बागेश्वर जनपद में सम्मिलित है। गंगोली के राजनीतिक भूगोल का अर्थ- इस विशिष्ट भौगोलिक क्षेत्र का प्राचीन काल से मध्य हिमालय के विभिन्न राज्य-राजवंशों से संबद्धता को स्पष्ट करना है। मानसखण्ड में इस क्षेत्र को शैल प्रदेश तथा तेरहवीं सदी में यह क्षेत्र एक स्वतंत्र राज्य ‘मणकोट’ के नाम से अस्तित्व में आया। चंद और गोरखा काल में यह क्षेत्र ‘गर्खा’ नामक एक प्रशासनिक इकाई था। ब्रिटिश काल में गर्खा को ‘परगना‘ कहा गया। वर्तमान में यह क्षेत्र दो जनपदां के मध्य सात तहसीलों में विभाजित है। कुमाऊँ अंचल (मध्य हिमालय) के प्राचीन गंगोली क्षेत्र को ‘गंगावली’ भी कहा जाता था। वर्तमान में यह क्षेत्र गंगोलीहाट, बेरीनाग, काण्डा और गणाई गंगोली, दुग नाकुरी, कपकोट और थल तहसील में विभाजित है। ब्रिटिश काल (सन्

चंद राजा विक्रमचंददेव (सन् 1423-1437 ई.) -ः

  चंद राजा विक्रमचंददेव (सन् 1423-1437 ई.) -ः        मध्य हिमालय में कुमाऊँ राज्य की स्थापना का श्रेय चंद राजवंश को जाता है। चंदों से पूर्व कुमाऊँ राज्य उत्तर कत्यूरी शासकों में विभाजित था। कत्यूरी राज्य का विभाजन वर्ष सन् 1279 ई. को माना जाता है, जब कत्यूरी त्रिलोकपाल के पुत्र अभयपाल कत्यूर से अस्कोट चले गये। इस कालखण्ड में कत्यूरी वंशजों का राज्य द्वाराहाट, बैजनाथ, गंगोली, अस्कोट, सोर तथा डोटी तक विस्तृत था। चंपावत के चंद शासक उत्तर कत्यूरियों के अधीनस्थ थे। कुमाऊँ में चंद राज्य का आरंभिक सत्ता केन्द्र चंपावत था। चंपावत नगर के निकट राजबूंगा चंद राज्य की आरंभिक राजधानी थी। इस वंश के संबंध में कहा जाता है कि इनके वंश मूल पुरुष ने कन्नौज से मध्य हिमालय क्षेत्र में आव्रजन किया था। कन्नौज सातवीं से बारहवीं शताब्दी तक उत्तर भारत का सत्ता केन्द्र था। चंपावत में चंद वंश को पूर्ववर्ती और परवर्ती चंदों में विभाजित किया जाता है। परवर्ती चंद राज्य के संथापक थोहरचंद थे। इनके वंशज गरुड़ ज्ञानचंद के ताम्रपत्रों से स्पष्ट होता है कि वे एक स्वतंत्र शासक थे। गरुड़ ज्ञानचंद ने स्वतंत्र शासक की उपाधि ‘महा