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ललितशूरदेव का 21 वें राज्य वर्ष का पाण्डुकेश्वर ताम्रपत्र के श्लोक-

 ललितशूरदेव का 21 वें राज्य वर्ष का पाण्डुकेश्वर ताम्रपत्र के श्लोक-      चमोली के पाण्डुकेश्वर से ललितशूरदेव के दो ताम्रपत्र- 21 वें और 22 वें राज्य वर्ष के प्राप्त हुए हैं। इस राजा के ताम्रपत्र में उल्लेखित कार्तिकेयपुर की पहचान विद्वान बागेश्वर जनपद के गोमती घाटी में स्थित ‘बैजनाथ’ से करते है, जहाँ प्राचीन मंदिरों का एक समूह गोमती के बायें तट पर स्थित है। इस नदी घाटी को कत्यूर घाटी भी कहते हैं। इस कारण बैजनाथ के शासकां तथा उत्तराखण्ड के प्राचीन मंदिरों की शैली को भी ‘कत्यूरी’ कहा जाता है। कार्तिकेयपुर नरेश ललितशूर को इतिहासकार कत्यूरी राजा कहते हैं। पाण्डुकेश्वर ताम्रपत्रों में इस कत्यूरी शासक की वंशावली ’निम्बर’ से आरंभ हुई। ताम्रपत्रां के अतिरिक्त बागेश्वर शिलालेख भी ललितशूरदेव की वंशावली की पुष्टि करता है, जिसे उसके पुत्र भूदेवदेव ने लिखवाया था।  इस संक्षिप्त लेख में ललितशूरदेव के 21 वें राज्य वर्ष में निर्गत पाण्डुकेश्वर ताम्रपत्र के 24 वीं से अंतिम 30 वीं पंक्ति तक का अध्ययन किया जा रहा है, जो संस्कृत श्लोकों का एक समूह है।    ललितशूरदेव के ताम्रपत्र की 24वीं से अंतिम 30 वीं पं

ललितशूरदेव का 21वें राज्य वर्ष का पाण्डुकेश्वर ताम्रपत्र (13 वीं से 24 वीं पंक्ति)-

  ललितशूरदेव का 21वें राज्य वर्ष का पाण्डुकेश्वर ताम्रपत्र (13 वीं से 24 वीं पंक्ति)- उत्तराखण्ड के उत्तरकाशी से चम्पावत तक विस्तृत भू-भाग पर स्थित प्राचीन मंदिरों से अनेक अभिलेख प्राप्त हुए हैं, जिनमें शिलालेख, स्तम्भलेख, त्रिशूललेख और ताम्रपत्र महत्वपूर्ण हैं। सैकड़ों की संख्या में प्राप्त ताम्र धातु के आयताकार और वृत्ताकार फलक पर उत्कीर्ण लेख ही उत्तराखण्ड के प्राचीन इतिहास के महत्वपूर्ण स्रोत हैं। विभिन्न राजवंशों द्वारा समय-समय पर निर्गत ताम्रपत्रों से ही उत्तराखण्ड के प्राचीन इतिहास को क्रमबद्धता से संकलित किया गया। ये ताम्र फलक मध्य हिमालय के मंदिरों और गृहों से प्राप्त हुए। उत्तरकाशी का प्राचीन नाम बाड़ाहाट था, जहाँ के महादेव मंदिर प्रांगण में स्थापित त्रिशूल पर लेख उत्कीर्ण है। इसी प्रकार एक अन्य त्रिशूल लेख चमोली जनपद के रुद्रनाथ मंदिर (गोपेश्वर) से प्राप्त हुआ है। पंचकेदारों में से एक रुद्रनाथ के अतिरिक्त चमोली जनपद में अनेक प्राचीन तीर्थ स्थल हैं, जिनमें पाण्डुकेश्वर नामक स्थल अलकनंदा के दायें तट पर स्थित है, जहाँ से कार्तिकेयपुर एवं सुभिक्षुपुर उद्घोष वाले ताम्रपत्र प्राप्

ललितशूरदेव का 21 वें राज्य वर्ष का पाण्डुकेश्वर ताम्रपत्र (प्रथम बारह पंक्तियां)-

 ललितशूरदेव का 21 वें राज्य वर्ष का पाण्डुकेश्वर ताम्रपत्र (प्रथम बारह पंक्तियां)- पाण्डुकेश्वर नामक स्थान उत्तराखण्ड के चमोली जनपद के अलकनंदा घाटी में स्थित गोविन्दघाट के निकट है। प्राचीन काल में हस्तिनापुर के राजा पाण्डु ने यहाँ तप किया था। इसलिए इस स्थान को पाण्डुकेश्वर कहा गया। राजा पाण्डु ने ऋर्षि किंडम के शाप से मुक्ति पाने हेतु यहाँ भगवान विष्णु का ध्यान और तप किया। इस कारण यहाँ का मंदिर ‘योग ध्यान बदरी’ कहलाया। पाण्डुकेश्वर शब्द ‘पाण्डुक’ और ईश्वर की संधि से बना है। ‘पाण्डुक’ का शाब्दिक अर्थ ‘पाण्डु रोग’ या सफेद रंग है। उत्तराखण्ड के प्राचीन इतिहास के लिए महत्वपूर्ण पाण्डुकेश्वर गांव अलकनंदा के दायें तट पर स्थित है, जहाँ से कार्तिकेयपुर एवं सुभिक्षुपुर उद्घोष वाले कुल चार ताम्रपत्र प्राप्त हुए हैं। इसलिए इन ताम्रपत्रों को पाण्डुकेश्वर ताम्रपत्र भी कहते हैं। कार्तिकेयपुर उद्घोष वाले यहाँ से प्राप्त ललितशूरदेव के दो ताम्रपत्र उत्तराखण्ड के प्राचीन इतिहास के लिए महत्वपूर्ण हैं, इनमें से एक ताम्रपत्र 21 वें राज्य वर्ष का है, जिसमें कुल 30 पंक्तियां हैं।      इस ताम्रपत्र की प्रथम

ललितशूरदेव का 21 वें राज्य वर्ष का पाण्डुकेश्वर ताम्रपत्र-

 ललितशूरदेव का 21 वें राज्य वर्ष का पाण्डुकेश्वर ताम्रपत्र- पाण्डुकेश्वर नामक स्थल चमोली जनपद में राष्ट्रीय-राजमार्ग 7 पर जोशीमठ और बद्रीनाथ के मध्य गोविन्दघाट के निकट है। यह स्थल समुद्र सतह से लगभग 1950 मीटर की ऊँचाई पर तथा 30° 38’ 17’’ उत्तरी अक्षांश और 79° 32’ 50’’ पूर्वी देशांतर रेखा पर स्थित है। कत्यूरी शैली में निर्मित यहाँ के प्राचीन मंदिर समूह को ‘योग ध्यान बदरी’ कहा जाता है। इस स्थल को हस्तिनापुर के प्राचीन राजा पाण्डु से संबद्ध किया जाता है। कहा जाता है कि पांच पाण्डवों- युधिष्टर, भीम, अर्जुन, नकुल और सहदेव ने इस स्थान पर ही जन्म लिया था। राजा पाण्डु ने ऋर्षि के शाप से मुक्ति पाने हेतु यहाँ भगवान विष्णु का ध्यान और तप किया, इस कारण यह स्थल पाण्डुकेश्वर और यहाँ का मंदिर ‘योग ध्यान बदरी’ कहलाया। यहाँ पर वासुदेव और कुबेर का मंदिर है। महाभारत के अनुसार पाण्डव अंतिम समय में स्वार्गारोहण हेतु गढ़वाल हिमालय ही आये थे।      पाण्डुकेश्वर गांव अलकनंदा के दायें तट पर स्थित है, जहाँ से कार्तिकेयपुर एवं सुभिक्षुपुर उद्घोष वाले ताम्रपत्र प्राप्त हुए हैं। इसलिए इन ताम्रपत्रों को पाण्डुकेश्