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जनवरी 18, 2022 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

उत्तराखण्ड के प्राचीन राज्य ‘ब्रह्मपुर’ की पहचान :-

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उत्तराखण्ड के प्राचीन राज्य ‘ब्रह्मपुर’ की पहचान :-        उत्तराखण्ड के प्राचीन इतिहास में मध्य हिमालय क्षेत्र के तीन राज्यों स्रुघ्न, गोविषाण और ब्रह्मपुर का विशेष उल्लेख किया गया है। चीनी यात्री ह्वैनसांग के यात्रा विवरण में भी इन तीन राज्यों का उल्लेख किया गया है। चीनी यात्री के यात्रा विवरणानुसार वह स्रुघ्न से मतिपुर, मतिपुर से ब्रह्मपुर तथा ब्रह्मपुर से गोविषाण गया था। स्रुघ्न की पहचान अम्बाला, मतिपुर की हरिद्वार और गोविषाण की पहचान काशीपुर के रूप में हो चुकी है। लेकिन ब्रह्मपुर की पहचान करने में विद्वानों में मतभेद है। यद्यपि सातवीं शताब्दी के भूगोल को समझना और चीनी यात्री ह्वैनसांग के यात्रा विवरण का सटीक विश्लेषण करना कठिन कार्य है। यात्रा विवरण का विश्लेषण भी विद्वानों के तथ्यों में विविधता उत्पन्न करता है। अतः कतिपय इतिहासकारों ने ब्रह्मपुर की पहचान भिन्न-भिन्न स्थानों से की है।  1- ’’एटकिंसन, ओकले तथा राहुल के अनुसार- बाड़ाहाट (उत्तरकाशी)।’’ 2- ’’कनिंघम और गुप्ते के अनुसार- लखनपुर वैराटपट्टन।’’ 3- ’’सेंट मार्टिन और मुकन्दीलाल के अनुसार- श्रीनगर।’’ 4- ’’फूरर के अनुसार- लालढां

कुमाऊँ का मौर्योत्तर कालीन इतिहास और ‘सेनापानी’

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 कुमाऊँ का मौर्योत्तर कालीन इतिहास और ‘सेनापानी’      देहरादून जनपद के कालसी नामक स्थान से मौर्य सम्राट अशोक का एक शिलालेख सन् 1860 में खोजा गया। यह शिलालेख उत्तराखण्ड में मौर्य वंश के शासन की पुष्टि करता है। मौर्य काल में मध्य हिमालय क्षेत्र पर कुणिन्द या कुलिन्द वंश का शासन था, जो सम्राट अशोक के अधीनस्थ थे। मौर्य वंश के पतनोपरांत मगध पर क्रमशः शुंग और कण्व वंश का शासन रहा था। प्राचीन भारतीय साहित्यिक स्रोत्रों के अनुसार शुंग ब्राह्मण थे। इस वंश को महर्षि पाणिनि ने भारद्वाज गोत्र का ब्राह्मण बताया। शुंग शासक पुष्यमित्र के शासन काल में भारत पर यवन आक्रमण हुआ था। उत्तराखण्ड पर शुंग शासन के प्रमाण अभी तक प्राप्त नहीं हुए हैं। लेकिन ’सेनापानी’ (नानकमत्ता के निकट) से प्राप्त स्तूप को शुंग कालीन माना जाता है।      शुंग शासक बौद्ध मत के कट्टर विरोधी थे। ‘‘बौद्ध ग्रन्थ दिव्यावदान तथा तिब्बती इतिहासकार तारानाथ के विवरणानुसार पुष्यमित्र शुंग को बौद्धों का घोर शत्रु तथा स्तूपों और विहारों का विनाशक बताया गया है।’’ बौद्ध ग्रन्थों के अनुसार उसने 84,000 स्तूपों  को नष्ट करने का निश्चय किया था। अतः