उत्तराखण्ड के अभिलेख और ‘कुशली’
उत्तराखण्ड के अभिलेख और कुशली उत्तराखण्ड के अभिलेख और कुशली शब्द का बहुत ही घनिष्ठ संबंध है। यह एक ऐसा शब्द है, जो समाज में आपसी संबंधों को सशक्त बनाता है। इसके अतिरिक्त यह शब्द उत्तराखण्ड के प्राचीन अभिलेखों में उत्कीर्ण लेख हेतु भी उपयोगी था। पाण्डुलिपि या अभिलेखीय साक्ष्य प्राचीन इतिहास के महत्वपूर्ण स्रोत हैं। साहित्यिक और धार्मिक पुस्तकों तथा अभिलेखों को लिखने हेतु एक विशिष्ट शैली के साथ-साथ नवीन शब्दों का प्रयोग प्राचीन इतिहास की एक विशेषता रही है। आरम्भिक मानव ने हजारों वर्ष पहले गुहाओं की चित्रकला में भी एक विशिष्ट शैली का प्रयोग किया। अल्मोड़ा के प्राचीन गुहा स्थल ‘लखुउडियार’ से एक विशिष्ट शैली के चित्र प्राप्त होते हैं। इस गुहा के चित्रों को देखने से प्रतीत होता है कि ‘‘चित्रण का प्रमुख विषय सम्भवतः समूहबद्ध नर्तन था।’’ इस शैलाश्रय के चित्र चट्टान की दीवार-छत पर गेरुवे, लाल, काले और सफेद रंग से बनाये गये हैं। इन चित्रों को खींचने में मुख्यतः दो प्रकार के ज्यामितीय रेखाओं का प्रयोग किया गया है- सरल और बक्र रेखा। बक्र रेखाओं को तरंगित रेखायें भी कह सकते हैं। प्राचीन