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उत्तराखण्ड के अभिलेख और ‘कुशली’

उत्तराखण्ड के अभिलेख और कुशली           उत्तराखण्ड के अभिलेख और कुशली शब्द का बहुत ही घनिष्ठ संबंध है। यह एक ऐसा शब्द है, जो समाज  में आपसी संबंधों को सशक्त बनाता है। इसके अतिरिक्त यह शब्द उत्तराखण्ड के प्राचीन अभिलेखों  में उत्कीर्ण लेख हेतु भी उपयोगी था। पाण्डुलिपि या अभिलेखीय साक्ष्य प्राचीन इतिहास के महत्वपूर्ण स्रोत हैं। साहित्यिक और धार्मिक पुस्तकों तथा अभिलेखों को लिखने हेतु एक विशिष्ट शैली के साथ-साथ नवीन शब्दों का प्रयोग प्राचीन इतिहास की एक विशेषता रही है। आरम्भिक मानव ने हजारों वर्ष पहले गुहाओं की चित्रकला में भी एक विशिष्ट शैली का प्रयोग किया। अल्मोड़ा के प्राचीन गुहा स्थल ‘लखुउडियार’ से एक विशिष्ट शैली के चित्र प्राप्त होते हैं। इस गुहा के चित्रों को देखने से प्रतीत होता है कि ‘‘चित्रण का प्रमुख विषय सम्भवतः समूहबद्ध नर्तन था।’’ इस शैलाश्रय के चित्र चट्टान की दीवार-छत पर गेरुवे, लाल, काले और सफेद रंग से बनाये गये हैं। इन चित्रों को खींचने में मुख्यतः दो प्रकार के ज्यामितीय रेखाओं का प्रयोग किया गया है- सरल और बक्र रेखा। बक्र रेखाओं को तरंगित रेखायें भी कह सकते हैं।  प्राचीन

ललितशूरदेव और पद्मटदेव के पाण्डुकेश्वर ताम्रपत्रों का विश्लेषण-

 ललितशूरदेव और पद्मटदेव के पाण्डुकेश्वर ताम्रपत्रों का विश्लेषण- चमोली जनपद के अलकनंदा घाटी में बद्रीनाथ के निकट पाण्डुकेश्वर मंदिर ऐतिहासिक दृष्टि से उत्तराखण्ड में सर्वाधिक महत्वपूर्ण स्थल है। यह मंदिर महाभारत कालीन राजा ‘पाण्डु’ और कार्तिकेयपुर के इतिहास को संरक्षित करने में सफल रहा। इस मंदिर से कार्तिकेयपुर नरेशों के चार ताम्रपत्र हुए हैं, जो उत्तराखण्ड के प्राचीन इतिहास के गौरवशाली कालखण्ड को अभिव्यक्त करते हैं। इनमें से दो ताम्रपत्र पिता-पुत्र के हैं। ये पिता-पुत्र पद्मटदेव और सुभिक्षराजदेव थे। इनके अतिरिक्त कार्तिकेयपुर के महान सम्राट ललितशूरदेव के दो ताम्रपत्र भी इस मंदिर से प्राप्त हुए हैं। पद्मटदेव ने ताम्रपत्रीय उद्घोष हेतु ललितशूरदेव का अनुकरण कर ‘कार्तिकेयपुर’ तथा उनके पुत्र सुभिक्षराजदेव ने अपने नाम से ‘सुभिक्षराजपुर’ राज्य उद्घोष का प्रयोग ताम्रपत्रां में किया। इतिहासकार इन्हें भी तथाकथित कत्यूरी वंश का शासक कहते हैं, जिनके प्रथम शासक बागेश्वर शिलालेख के ‘मसन्तनदेव’ को मान्य किया गया है।  पद्मटदेव के ताम्रपत्रानुसार- सगर, दिलीप, मान्धातृ, धुन्धुमार, भगीरथ आदि सतयुगी