विष्णुवर्मन का ताम्रपत्र :-

 विष्णुवर्मन का ताम्रपत्र :-

        विष्णुवर्मन का ताम्रपत्र ब्रह्मपुर के पौरव वंश के इतिहास पर प्रकाश डालने वाला एक महत्वपूर्ण स्रोत है। पौरव वंश का चतुर्थ शासक द्युतिवर्मन था, जिसके मृत्यूपरांत उसका पुत्र विष्णुवर्मन ब्रह्मपुर का शासक हुआ। इस पौरव राजा ने भी पिता की भाँति राज्य संवत् में ताम्रपत्र निर्गत किया, जिसके कारण इस वंश के शासन काल को ईस्वी में निर्धारित नहीं किया जा सका है। लेकिन विष्णुवर्मन का ताम्रपत्र ब्रह्मपुर राज्य के भूमि पैमाइश व्यवस्था पर विस्तृत प्रकाश डालता है। 

        ब्रह्मपुर के पौरव वंशीय द्युतिवर्मन और उसके पुत्र विष्णुवर्मन का एक-एक ताम्रपत्र अल्मोड़ा जनपद के स्याल्दे तहसील के तालेश्वर गांव से सन् 1915 में प्राप्त हुए। द्युतिवर्मन का ताम्रपत्र राज्य संवत् 5 वें तथा विष्णुवर्मन का ताम्रपत्र राज्य संवत 20 वें वर्ष को निर्गत किया गया था। पिता की भाँति पुत्र विष्णुवर्मन का ताम्रपत्र कन्नौज नरेश हर्ष के शासन काल से पूर्व निर्गत किया गया था, जिसकी पुष्टि अग्रलिखित तथ्य करते हैं - 

1- राजा हर्ष के बांसखेड़ा और मधुबन ताम्रपत्रों से उच्च वरीयता वाले सामन्त और महासामन्त जैसे महत्वपूर्ण पदाधिकारियों का उल्लेख प्राप्त होता है। इसी प्रकार हर्ष के परवर्ती उत्तराखण्ड के कार्तिकेयपुर नरेशों (नौवीं-दशवीं शताब्दी) के ताम्रपत्रों से भी सामन्त और महासामन्त जैसे राज्य पदाधिकारियों का उल्लेख प्राप्त होता है। जबकि विष्णुवर्मन और उसके पिता द्युतिवर्मन का ताम्रपत्र स्पष्ट करता है कि ब्रह्मपुर राज्य सामन्त और महासामन्त जैसे पदाधिकारियों से अनभिज्ञ था। भारतीय सन्दर्भ में सामन्ती व्यवस्था के उद्भव काल को विद्वान छठी शताब्दी मान्य करते हैं। अतः भारत में सामन्ती व्यवस्था के आरंभ होने से पूर्व ही पौरव शासक द्युतिवर्मन और उसके पुत्र विष्णुवर्मन का ताम्रपत्र निर्गत हो चुका था। 

2- उत्तर भारत के विभिन्न राजवंशों (विष्णुवर्मन-पौरव, हर्ष-पूष्यभूति, देवपाल-पाल, ललितशूरदेव-कार्तिकेयपुर) के ताम्रपत्रों में उल्लेखित राज्य पदाधिकारियों की सूची और उनके वरीयता क्रम के आधार पर भी ब्रह्मपुर नरेश विष्णुवर्मन को सम्राट हर्ष का पूर्ववर्ती निर्धारित कर सकते है। गुप्त साम्राज्य में भुक्ति/प्रांत का अधिकारी ‘उपरिक’ कहलाता था। विष्णुवर्मन का तालेश्वर ताम्रपत्र ‘उपरिक’ को प्रथम, हर्ष का बांसखेड़ा ताम्रपत्र सातवीं तथा कार्तिकेयपुर उद्घोष वाले कत्यूरी नरेश ललितशूरदेव का पाण्डुकेश्वर ताम्रपत्र सत्रहवीं वरीयता प्रदान करता है। छठवीं-सातवीं से नौवीं-दशवीं शताब्दी तक ‘उपरिक’ के घटते वरीयता क्रम से भी स्पष्ट होता है कि पौरव नरेश विष्णुवर्मन, कन्नौज नरेश हर्ष का पूर्ववर्ती था।

ब्रह्मपुर की पहचान-

        विष्णुवर्मन का ताम्रपत्र स्पष्ट करता है कि उसकी राजधानी का नाम ब्रह्मपुर था। भारतीय सर्वेक्षण विभाग के प्रथम महानिदेशक अलेक्जैण्डर कनिंघम ने कुमाऊँ के पश्चिमी रामगंगा घाटी में स्थित चौखुटिया के बैराट्ट और लखनपुर को ब्रह्मपुर कहा था। इस तथ्य की पुष्टि द्युतिवर्मन और विष्णुवर्मन का ताम्रपत्र प्राप्ति स्थल तालेश्वर गांव भी करता है, जो अल्मोड़ा जनपद के गेवाड़ घाटी (पश्चिमी रामगंगा) के पश्चिम में स्थित गढ़वाल सीमावर्ती स्याल्दे तहसील का एक गांव है। 

        सन् 1915 ई. में कुमाऊँ और गढ़वाल सीमावर्ती तालेश्वर गांव में एक खेत की प्राचीर निर्माण हेतु खुदाई का कार्य चल रहा था। इस खुदाई में दो ताम्रपत्र प्राप्त हुए, जो ब्रह्मपुर के पौरव वंशी द्युतिवर्मन और विष्णुवर्मन के थे। इन दो ताम्रपत्रों की खोज से पूर्व उत्तराखण्ड के इतिहास में पौरव वंश का कोई स्थान नहीं था। उत्तराखण्ड का प्राचीन इतिहास कुणिन्द, किरात, खस, शक, और कत्यूरी के क्रम में संकलित था। इन दो ताम्रपत्रों से ब्रह्मपुर के पौरव वंश को उत्तराखण्ड के इतिहास में मान्यता प्राप्त हुई। 

        अल्मोड़ा जनपद के इस ऐतिहासिक गांव में शिव को समर्पित तालेश्वर महादेव का प्राचीन मंदिर भी है, जिसके आंगन में गणेश और नंदी की विशाल प्रस्तर प्रतिमाएं सुशोभित हैं।

लिपि और भाषा -

        पौरव शासक विष्णुवर्मन का ताम्रपत्र मूलतः ब्राह्मी लिपि में उत्कीर्ण है, जिसका संस्कृत अनुवाद डॉ. शिव प्रसाद डबराल की पुस्तक ‘उत्तराखण्ड अभिलेख एवं मुद्रा’ में प्रकाशित हो चुका है। इस पुस्तक में विष्णुवर्मन के ताम्रपत्र की पंक्तियां देवनागरी लिपि और संस्कृत भाषा में इस प्रकार से उल्लेखित हैं-

1- स्वस्ति ।। पुरोत्तमाद् व्र (ब्र) ह्मपुरात् सकलभुवन भव भंग विभागकारियो (ऽ) नन्त मूर्त्तेरनाद्या वेद्याचिन्त्याद्भुतोद्भुत प्रभूत प्रभावाति शंयस्य-

2-क्ष्मातल विपुल विकट स्फटा पटल निकट प्ररूढ़ मणिगण किरणारुणित पाताल तलस्य (-) धरणि धरण योग्य धारणा-

3- धार (रिणो) भुजगराजरूपस्स्य (स्य) भगवद्वीरणेश्वर स्वामिनश्चरण कमलानुध्यातः सोमदिवाकर प्रांशु वंश वेश्म प्रदीपः सर्व्वप्रजानुग्र (ा)-

4- याभ्युदितप्रभावः परमभट्टारक महाराजाधिराज श्र्यश्नि (ग्नि) वर्म्मा (।) तदात्मजस्तत्पाद प्रसादादवाप्त प्राज्य राज्यः क्षपित महापक्ष विपक्ष

5- कक्ष द्युतिर्म्महाराजाधिराज श्रीद्युतिवर्म्मा (।।) तन्ननयो (तत्तनयो) नय विनय शौर्य धैर्य स्थैर्य गाम्भीर्यौदार्य गुण गणाधिष्ठित मूर्ति श्चक्क्रधर (ः)

6- इव प्रजानामार्तिहरः परमपितृभक्तः परमभट्टारक महाराजाधिराज श्री विष्णुवर्म्मा समुपचित कुशल

 व (ब)ल वीर्यः पर्व्वताकार

7- राज्ये समुत्पत्स्यमानास्मद् वंशालंकारान्देवा कारान् राजलक्ष्मी ि (र्व्) वराजमान (लक्ष्मी विराजमान) मूर्त्तीन्महाराजविशेषान्प्रतिमान्य दण्डोपरिक प्रमातार

8- प्रतिहार कुमारामात्य पीलुपत्यश्वपति प्रभृत्यनुजीवि वर्ग्गमन्यांश्च भोगि भागिक करिक कुलचारिक प्रधानादि कुटुवि (म्बि) नः

9- समाज्ञापयति (।।) विदितमस्तु वस्त्रात मारि पतिशर्म्म गौग्गुलिक परिषत्प्रमुखेन देवनिकायेन सांधिकरणेन विज्ञापिताः स्मः-

10- सर्व्वस्थानेप्षु दत्तिदायक साधु प्रतिपादित प्राग् भुज्यमाना विच्छिन्न भोगीन भुवां कालेनगच्छता केचिदसत्पुरुषाः  कलि दोष-

11- लोभ ग्रहाविष्ठा आक्षेपं कुर्युं रित्यर्हन्ति भट्टारकपादाः पुण्ययशो (ऽ) भिवृद्धये तन्नाम समारोपणानुस्मरण स्थिरकरण-

12- मधिकृत्य ताम्रपट्ट दानेन प्रसादं कर्त्तु मिति यतोस्मामिर्भक्ति भावित हृदयैरनुमोदना शासनं भुवामर्थे महासत्रो-

13- पचयाय तिपादितं यत (त्र) स्तम्भसंकटिकायां वज्रस्थलक्षेत्र कुल्य वापं तत्पूर्व्वेण हुडुक्क सूनाक्षेत्रं तत्समीपे मावलक क्षेत्रं-

14- खारिवापं समधिकं सजंगलम् साधुतुंगकग्राम तले क्षेत्त्राष्ट (क्षेत्रमष्ट-) द्रोण वापं पाटलिकारामके चम्पक तोली देवक्यकर्ण्ण काश्च-

15- गोमतिसार्यां व्र (ब्र)ह्मेश्वर देवकुल समीपे पट्टवायक दत्तिर्म्मध्यमारक क्षेत्र चतुर्द्दश द्रोण वापं सेम्मक क्षेत्रं चतुर्द्दश द्रोण वापं-

16- कपिलेश्वर नामधेय क्षेत्रकुल्यवापं लवणोदके नन्दिकेरक क्षेत्र षड्द्रोणवापं भोगिक गेल्लणण्णाक (गेल्लण अष्णक) भ्रातृ-दत्ते क्षेत्रसूने द्वे-

17- खारिवापं गभीरपल्लिकायां डडुवकजंगल कुल्यवापं देवक्य तोली पंचद्रोणवापं मध्यमपुरक परस्ताद् रजकस्थलक्षेत्र षड् द्रोण- 

18- वापं देवक्यानूप क्षेत्र खारि वाप त्त्रय मधिकं वासोदकं जंगलम् तदुपरि खट्टलिका तुलाकण्ठकयक्ष समीपे नरकक्षेत्रम्

19- भुष्टिका क्षेत्त्रमष्ठद्रोणवापम् तत्प्रापि क्षेत्र कर्ण्णकम् नदीतटे भृष्टक क्षेत्त्रं पंचद्रोणवापम् पूर्व्वेण वीजकरणी वड्र क्षेत्त्राष्ट द्रोण-

20- वापम् पर्व्वतार क्षेत्र खारी वापम् सकुल्यम् तत्समीपे जंगल खोह्लिका खट्टलिकाक्षेत्त्रं सजंलं नवद्रोण वापम् देवक्य क्षेत्त्राष्ट द्रोण वापम्

21- स्कम्भारतोली निश्चिता देव्या (व्य) धस्तात् केदारकुल्यवापम् देव्खल ग्रामके केदार द्वि-द्रोण वापिका शुण्ठीनावानूपे सेम्मक क्षेत्त्रम्

22- मधुफल मूलक क्षेत्त्रम् खट्टलिका क्षेत्त्रंज च्छिद्र गर्त्तायाम् नागिल क्षत्त्रकुल्य वापम् सजंगलम् अन्ध्रलकर्ण्णकास्त्रयः जरोलक केदा-

23- रम् सेम्महिका क्षेत्रम् व्यासोष्ठिनी जगंलम् तत्प्रापि डड्डवर्क पर्व्वते च भोगिक बराहदत्त प्रत्यया भूमयो व (ब)हव्यः कार्तिकेयपुरे

24- निम्बसार्यां व (ब) लाध्यक्ष लवचन्द्र सकाशाद् दिविरपति धनदत्तेनो पक्क्रीतम् समूल समात्रकमर्द्धपंचभिः सुवर्ण्णैंः श्वेतो (ता) क्षेत्त्र पंचद्रोण-

25- वापम् दूर्व्वाषण्डके च अनेनैव दिविरपतिनोपक्क्रीतं कायस्थ णण्ण्कसकाशात्समूल समात्त्रकमष्टाभिः सुवर्ण्णैः वेतस-

26- कुल्यवाप नामधेयं सौ (सो) दक जगंलमावसथ स्याग्रतो देवकुलिकायां वामन स्वामि पादानां निवेदनक निमित्तमेवमाज्ञापिते

27- क्रिष्णहयोभि (कृष्णाहयो हि) जायन्ते य आक्षेपं कुर्यात्स पंचमहापातक संयुक्तः स्यादुक्तंच भगवता व्यासेन.....विन्ध्याटवि ष्वयोयातु शुष्क कोटर वासिनः

28- दूतकः प्रमातार वराहदत्तः लिखितमिदं दिविरपति धनदत्तेन उक्ती (उत्की) र्ण्णंच सौवणि्र्ंणकानन्तेन- रा.सं. 20 मार्ग्ग दि. 5

भावानुवाद-

स्वस्ति। नगरों में श्रेष्ठ ब्रह्मपुर से।

उज्ज्वल सोम सूर्य वंश के प्रदीप, प्रजानुरागी, परमभट्टारक महाराजाधिराज श्री अग्निवर्म्न हुए जो समस्त भुवनों के विभागकर्त्ता अनन्त (शेषनाग) की मूर्ति, अनाद्य, अवेद्य, अचिंत्य, अद्भुत एवं धरातल पर प्रभूत प्रभाव वाले, मणिगण की किरणों से उज्जवल, विशाल, विकट फणयुक्त, धरती को धारण करने में तत्पर, नागदेवता की आकृति वाले भगवान् वीरणेश्वर के चरणकमलों का ध्यान करते थे।

उनके पुत्र, उनके चरणों के प्रसाद से राज्य प्राप्त करने वाले, विपक्षियों की द्युति के अपहरणकर्त्ता महाराजाधिराज द्युतिवर्मन हुए। उनके पुत्र नीति, विनय, शौर्य, धैर्य, स्थिरता, गम्भीरता, उदारता आदि गुणों से पूर्ण, चक्रधर के समान प्रजा के कष्ट हरने वाले, परमपितृभक्त, परमभट्टारक महाराजाधिराज श्री विष्णुवर्मन कुशल हैं।

तथा अपने बलवीर्यसम्पन्न पर्वताकर राज्य में, वंश के अलंकार स्वरूप, राज्य लक्ष्मी से संयुक्त अपने पूर्वज नरेशों की वन्दना करके दण्डधर, प्रमातार, प्रतिहार, कुमारामात्य, हस्तिशाला, अश्वशाला आदि के अध्यक्ष, सेवकों, आमात्यों, भोगिक, करिक, कुलचारिक, प्रांतादि के अध्यक्षों सहित राजपरिवार के समस्त अंगों को आदेश देते हैं कि-

आप लोगों को विदित होना चाहिये कि गौग्गुलिकों की परिषद्, मंदिरों के कर्मचारियों के प्रधान, त्रात मारिपतिशर्म्मन् ने अन्य अधिकारियों के समक्ष हमसे प्रार्थना की है कि-

जो भूमि उदार दाताओं ने प्रदान की है और जिसका हम चिरकाल से अविच्छिन्न भोग कर रहे हैं, उस भूमि के सम्बंध में परमभट्टारक अपने पुण्य यश की वृद्धि के लिये ताम्रपट्ट प्रदान करें जिससे कलियुगजन्य लोभ से प्रेरित होकर कोई दुष्ट व्यक्ति उस पर अधिकार न करे।

अस्तु हमने भक्ति व पूर्ण हृदय से महासत्र का कार्य चालू रखने हेतु उल्लिखित भूमि के सम्बंध में शासन देने का अनुमोदन किया है।

स्तम्भसंकटिका में एक कुल्य बीजवाला वज्रस्थल खेत, उसके पूर्व में हुड्डकसूना खेत, एक खारी के कुछ अधिक बीजवाला मालवक खेत, साधुतुंगग्राम के नीचे जंगल सहित आठ द्रोण बीजवाला खेत, पाटलिकारामक में चम्पकतोली और देवक्यकर्णिका नामक खेत, गोमतीसारी नामक गांव में ब्रह्मेश्वर देवकुल के पास पटुवाओं द्वारा दिया गया मध्यमारक खेत, चौदह द्रोण बीजवाला सेम्मक खेत, एक कुल्या बीज वाला कपिलेश्वर खेत, लवणोदक गांव में छै द्रोण बीजवाला नन्दिकेरक खेत, भूस्वामी गेलणक के भ्राता द्वारा दिये गये खारी बीज वाले दो खेत, गभीरपल्लिका में डडुवकजंगल, एक कुल्य बीजवाला देवक्यतोली, पांच द्रोण बीजवाला मध्यमपुरक खेत, निकट का छै द्रोण बीजवाला रजकस्थल खेत, देवक्यरौली के पास एक खारी तीन द्रोण बीजवाला खेत, उससे आगे रौली और जंगल, उसके ऊपर खट्टलिका, तुलाकंठकयक्ष के (देवालय के) पास नरकक्षेत्र और आठ द्रोणवाला, भ्रष्टिका क्षेत्र, कर्णक खेत, नदी तट पर पांच द्रोण बीजवाला भृष्टकक्षेत्र, उससे पूर्व की ओर बीजकरण, आठ द्रोणवाला बड्र खेत, एक खारी बीजवाला पर्वतार खेत, उसकी कूल, उसके पास का खोह्णिका जंगल, नौ, द्रोण बीजवाला जंगल सहित, खट्टलिका क्षेत्र, आठ द्रोण बीजवाला देवक्य खेत, स्कंभारतोली, निश्चितादेवी के नीचे सिंचाई वाले देवखल गांव में दो द्रोण बीजवाली केदारभूमि (सेरा), शुंठीनावानूप गांव से सेम्मक मधुपल, मूलक और खट्टलिका खेत, छिद्रगर्ता में एक कुल्य बीजवाला जंगल सहित नागिल, अन्धलकर्णका, जरोलक सेरा, मेम्महिका खेत, व्यासोष्ठिनी जंगल, आगे डडुवक पर्वत पर भूस्वामी बराहदत्त के अनेक खेत, पांच द्रोणवाला खेत जो कार्तिकेयपुर के अन्तर्गत निम्बसारी में वलाध्यक्ष लवचन्द्र से धनदत्त दिविरपति ने साढ़े चार सुवर्णमुद्राओं में समूल, समात्रक (वृक्ष और घर आदि सहित) खरीदा है, दूर्वाशण्डक गांव में जंगल और रौली सहित एक कुल्य बीजवाला वेतस खेत, जिसे इसी दिविरपति ने आठ स्वर्णमुद्राओं में कायस्थ नन्नक से समूल, समात्रक खरीदकर वामनस्वामि के मन्दिर के लिए अर्पित किया है।

जो इसमें आक्षेप करेगा उस पर पंचपातक लगेंगे। भगवान् व्यास ने कहा है, (जो ऐसा करता है उसे) विंध्याटवीं में सूखे वृक्ष के कोटर में (सर्प बनकर) बसना पड़ता है।

दूतक-प्रमातार बराहदत्त। लिखा दिविरपति धनदत्त ने। उत्कीर्ण किया स्वर्णकार अनन्त ने। रा.सं. 20, मार्ग., दि. 5।




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