कुमाऊँ राज्य पर प्रथम रोहिला आक्रमण

  कुमाऊँ राज्य पर प्रथम रोहिला आक्रमण-

        कुमाऊँ राज्य पर प्रथम रोहिला आक्रमण सन् 1743-44 ई. में किया गया था। मध्यकाल में कुमाऊँ राज्य की पूर्वी और पश्चिमी सीमा पर क्रमशः डोटी व गढ़वाल परम्परागत शत्रु राज्य थे। प्राचीन काल से ही उत्तर में स्थित विशाल हिमालय और दक्षिण में तराई का सघन वन क्षेत्र इस पर्वतीय राज्य हेतु सुरक्षित प्राकृतिक सीमा प्रहरी का कार्य करते थे। यही कारण था कि कुमाऊँ राज्य पर आक्रमण डोटी या गढ़वाल राज्य से हुआ करते थे।।

        मध्यकाल में कुमाऊँ के तराई क्षेत्र में चंद राजाओं ने पहाड़ से लोगों को ले जाकर बसाया। महान चंद राजा रुद्रचंद ने रुद्रपुर और बाजबहादुरचंद ने बाजपुर तथा उसके राज्य कर्मचारी काशीराम अधिकारी ने प्राचीन गोविषाण के स्थान पर काशीपुर को विकसित किया। इस प्रकार चंद काल में कुमाऊँ के पर्वतीय भाग से सम्पर्क हेतु रुद्रपुर और काशीपुर नामक दो महत्वपूर्ण पड़ाव स्थापित हो चुके थे।

रोहिला-

        कुमाऊँ राज्य अठारहवीं शताब्दी में उत्तराखण्ड के तराई क्षेत्र तक विस्तृत था। तराई के दक्षिणी सीमा पर अवध और रोहिला राज्य थे। रोहिला राज्य क्षेत्र को अब रोहिलखण्ड या रूहेलखण्ड भी कहते हैं। इस क्षेत्र का प्राचीन नाम कठेड़ या कटेहर था, जहाँ अठारहवीं शताब्दी के द्वितीय दशक में अफगान मूल के एक घोड़ा व्यापारी दाउद खान ने अपना एक सैन्य संगठन बनाया, जिसे अफगान के रोह क्षेत्र का निवासी होने के कारण रोहिला सरदार भी कहा जाता था। कठेहर या कटेहर क्षेत्र में मुस्लिम रोहिला राज्य की स्थापना दाउद खान के उत्तराधिकारी अली मोहम्मद खान ने की थी, जिसका शासन काल सन् 1726 से 1748 ई. तक था। इस कालखण्ड में रोहिला राज्य बरेली से रामपुर क्षेत्र तक विस्तृत हो गया था।

प्रथम रोहिला आक्रमण और कुमाऊँ का चंद राजा- 

        कुमाऊँ राज्य पर जब प्रथम रोहिला आक्रमण हुआ, तब कुमाऊँ के राजसिंहासन कल्याणचंद आसित थे। चंद इतिहास में कल्याणचंद नाम के और भी राजा हुए। अठारहवीं शताब्दी के कल्याणचंद के संबंध में इतना ही ज्ञात है कि वह नारायणचंद का वंशज था, जो चंद राजा लक्ष्मीचंद (1597-1621) का पुत्र था। नारायणचंद के अतिरिक्त लक्ष्मीचंद के तीन पुत्र दिलीपचंद, त्रिमलचंद और नीलाचंद थे। लक्ष्मीचंद की मृत्यूपरांत सन् 1621 से 1628 तक अल्मोड़ा में हुए राजषड्यंत्रों में राजपरिवार के सदस्यों को चुन-चुन कर मौत के घाट उतार दिया गया था। नारायणचंद ने अपने प्राणों की रक्षा हेतु नेपाल में शरण ली, जहाँ इसके वंशज कल्याणचंद का जन्म हुआ।  

        राजषड्यंत्र काल में नारायणचंद के भ्राता दिलीपचंद और दिलीपचंद के पुत्र विजयचंद तथा त्रिमलचंद चंद राजसिंहासन पर आसित हुए थे। त्रिमलचंद के उत्तराधिकारी बाजबहादुरचंद थे, जो नीलाचंद के पुत्र थे। नेपाल निर्वासित हो चुके नारायणचंद के अतिरिक्त लक्ष्मीचंद के तीन पुत्रों या उसके पारिवारिक सदस्य सत्रहवीं शताब्दी में चंद राजसिंहासन पर आसित होने में सफल रहे थे। चौथे पुत्र नारायणचंद का वंशज कल्याणचंद सौभाग्य से अठारहवीं शताब्दी में चंद राजसिंहासन पर आसित होने में सफल हुआ।

लक्ष्मीचंद से कल्याणचंद तक कुमाऊँ के चंद राजा-

        लक्ष्मीचंद सम्पूर्ण कुमाऊँ के प्रथम चंद राजा रुद्रचंद (1565-1597) के पुत्र थे। बूढ़ा केदार ताम्रपत्रानुसार सन् 1568 ई. में रुद्रचंद के उत्तराधिकारी संग्राम गुसाई घोषित हो चुके थे, जो अंधे थे। अतः कुमौड़ आदेश पत्र स्पष्ट करता है कि सन् 1579 में संग्राम गुसाई के स्थान पर कनिष्ठ पुत्र लखि गुसाई को रुद्रचंद ने अपना उत्तराधिकारी घोषित किया, जो सन् 1597 ई. में लक्ष्मीचंद के नाम से चंद राजसिंहासन पर आसित हुए। लक्ष्मीचंद से कल्याणचंद तक निम्नलिखित राजा कुमाऊँ के राजसिंहासन पर आसित हुए थे। 

1- दिलीपचंद (1621-1623) पुत्र लक्ष्मीचंद।

2- विजयचंद (1623-1628) पुत्र दिलीपचंद।

3- त्रिमलचंद (1628-1638) पुत्र लक्ष्मीचंद।

4- बाजबहादुरचंद (1638-1678) पुत्र नीलाचंद (लक्ष्मीचंद का पुत्र)।

5- उद्योतचंद (1678-1698) पुत्र बाजबहादुरचंद।

6- ज्ञानचंद (1678-1708) पुत्र उद्योतचंद।

7- जगतचंद (1708-1720) पुत्र ज्ञानचंद।

8- देवीचंद (1720-1727) पुत्र जगतचंद।

9- अजीतचंद (1727-1728) पुत्र नरपतसिंह कठेड़िया/चंद राजा जगतचंद का भांजा।

10- कल्याणचंद (सन् 1728-1747) नारायणचंद (पुत्र लक्ष्मीचंद) का वंशज। 

गैड़ागर्दी- 

        नारायणचंद के वंशज कल्याणचंद सन् 1728 ई. में कुमाऊँ के राजसिंहासन पर आसित हुए। यह राजसत्ता उन्हें गैड़ागर्दी के कारण प्राप्त हुई थी। अठारहवीं शताब्दी का तीसरा दशक अल्मोड़ा में ‘गैड़ागर्दी’ का कालखण्ड था। इस कालखण्ड में मानिक बिष्ट और उसके पुत्र पूरनमल बिष्ट ने चंद राजसत्ता को अपने नियंत्रण में ले लिया था। ये जाति से गैड़ा-बिष्ट थे। अतः इनके सत्ता नियंत्रण के काल खण्ड को गैड़ागर्दी कहा गया। देवीचंद और अजीतचंद गैड़ागर्दी के तहत मारे गये थे। 

        मानिक बिष्ट और उसके पुत्र पूरनमल ने 26 फरवरी, सन् 1727 ई. (संवत् 1783 शाके 1648, फाल्गुन सुदी 5) को षड्यंत्र के तहत नैनीताल जनपद के देवीपुरा (कोटाबाग) में देवीचंद की हत्या कर दी थी। अजीत सिंह, कठेड़ (रोहिलखण्ड) में पीपली के राजा नरपतसिंह के पुत्र और चंद राजा जगतचंद के भांजे थे, जो अजीतचंद के नाम से चंद राजसिंहासन पर आसित करवाये गये। इन्हें भी गैड़ा पिता-पुत्र ने मार डाला था।

कल्याणचंद को भाग्य से चंद राजसिंहासन प्राप्त हुआ- 

         गैड़ागर्दी के कारण चंद राजसिंहासन के उत्तराधिकारियों की हत्याएं अल्मोड़ा में आम बात हो गयी थी। अजीतचंद की हत्योपरांत उत्तराधिकारियों की खोज शुरू हुई, जिसके फलस्वरूप कल्याणचंद को डोटी के माल क्षेत्र से खोज निकाला गया। 

कल्याणचंद का नेपाल में जीवन-

        राजसिंहासन पर आसित होने से पूर्व कल्याणचंद डोटी के माल क्षेत्र में निर्धनता का जीवन व्यतीत कर रहा था। कहा जाता है कि जब लोग इन्हें लेने नेपाल गये, तब वह जंगल में तरूर या तौड़ खोदते हुए एक गड्डे में मिला था। कुमाऊँ क्षेत्र में तौड़ को महाशिवरात्रि पर्व पर खोदा जाता है। सन् 1728 ई. में महाशिवरात्रि का पर्व 9 फरवरी, रविवार को था। इस पर्व के एक माहोपरांत चैत्र माह की शुक्ल प्रतिपदा (11 मार्च, 1728) को कल्याणचंद कुमाऊँ के राजसिंहासन पर आसित हुए थे।

        समय-समय पर अल्मोड़ा का सत्ता संघर्ष राजपरिवार के सदस्यों के लिए इतना कष्टकारी था कि कल्याणचंद का परिवार विपिन्नता का जीवन व्यतीत कर रहा था। इनके कपड़े गंदे, जीर्ण-शीर्णावस्था में थे। लम्बे बाल और दाढ़ी के वेश में कल्याणचंद अल्मोड़ा राजपरिवार में चल रहे मार-काट से सुरक्षित, डोटी राज्य में एक साधारण आम नागरिक जैसा था। 

रोहिला आक्रमण और कुमाऊँ राज्य के वैदेशिक संबंध- 

        इतिहासकार बद्रीदत्त पाण्डे ने प्रथम रोहिला आक्रमण के समय कुमाऊँ राज्य के वैदेशिक संबंधों को इस प्रकार से व्यक्त किया-

‘‘सन् 1743-44 में अली मुहम्मदखाँ ने अपने तीन नामी सरदार हाफिज रहमतखाँ, पैदाखाँ तथा बक्सी सरदारखाँ को 10000 सेना लेकर कुमाऊँ पर चढ़ाई करने को भेज दिया। कल्याणचंद संकट में थे। आंवले तथा अवध के नवाब दुश्मन बने बैठे थे। डोटी के राजा अपने एक साधारण प्रजा के कूर्मांचल के राजा बन जाने से दिल-ही-दिल में कुढ़े हुए थे, इधर रोहिले आ धमके। इसकी सूचना श्रीरामदत्त अधिकारी ने राजा को दे दी, और उधर शिवदेव जोशी ने धन माँगा, ताकि वह फौज एकत्र कर व किलेबंदी कर रोहिलों को कुमाऊँ में न आने दें।’’

मुख्य बिंदु-

1- अवध के नवाब सफदर जंग या मंसूर अली खां (1739-1754) से कल्याणचंद के संबंध अच्छे नहीं थे। तराई में सरबना व बिलहरी को लेकर विवाद चल रहा था। 

2- नेपाल का डोटी राजा भी कुमाऊँ राज्य से परम्परागत द्वेष रखता था।

3- गढ़वाल राज्य से सीमा विवाद और शत्रुता चली आ रही थी। लेकिन गढ़वाल राजा प्रदीपशाह (1717-1773) के प्रयासों से कुमाऊँ और गढ़वाल के मध्य सन् 1739 में संधि हो चुकी थी।

4- सन् 1741 ई. में उदयपुर के राजा जगतसिंह का वकील पत्र एवं भेंट लेकर अल्मोड़ा आया था। राजा कल्याणचंद ने भी उदयपुर के वकील को पत्र एवं उपहार देकर विदा किया।

5- सन् 1741 ई. में गढ़वाल के राजा प्रदीप शाह के वकील के साथ कल्याणचंद ने भी अपना वकील पत्र और उपहारों के साथ जयपुर के राजा जयसिंह के पास भेजा था।

6- कुमाऊँ के राजा कल्याणचंद ने वैवाहिक संबंधों से मध्य हिमालय में अपनी स्थिति को सशक्त किया। इस राजा ने अपनी एक पुत्री का विवाह कटेहर क्षेत्र के राजा तेजसिंह कठेड़िया से सन् 1731 ई. में तथा दूसरी पुत्री का विवाह सन् 1736 ई. में सिरमौर (नाहन) के राजा विजयप्रकाश के साथ सम्पन्न करवाया। 

नोट- रामदत्त अधिकारी कोटा-भाबर के प्रशासक थे। तराई-भाबर के प्रशासक शिवदेव जोशी के नेतृत्व में चंद सेना ने रोहिलों से युद्ध किया था । 

कुमाऊँ राज्य पर रोहिला आक्रमण के कारण-

1- ऐतिहासिक कारण-

        आंवला का रोहिला सरदार अली मुहम्मद अपने संरक्षक दाउद खान की हत्या का प्रतिशोध चंदों से लेना चाहता था, जिसकी हत्या चंद राजा देवीचंद ने करवायी थी। दाउद खान, देवीचंद की सहायता से तराई में अपनी सैन्य शक्ति को बढ़ाने में सफल रहा। लेकिन जब मुगल सेना से चंद सेना का युद्ध हुआ, तो वह मुगलों से जा मिला था। देवीचंद ने दाउद खान के धोखे से अनजाना बनने का बहाना बनाते हुए उसे सैनिकों के शेष वेतन हेतु ठाकुरद्वारा के पास बुलाकर मार डाला। 

2- तात्कालिक कारण-

        हिम्मत सिंह रौतेला की हत्या रोहिलों का कुमाऊँ पर आक्रमण करने का सबसे प्रमुख तात्कालिक कारण था। हिम्मत सिंह रौतेला चंद राजपरिवार से संबंध रखता था। वह कल्याणचंद को चुनौती देना लगा था। तराई में एक छोटी झड़प में उसे चंद सेना ने मार भगाया। वह अपने प्राणों की रक्षा हेतु अली मुहम्मद के बदायूँ शिविर में शरण लेने को बाध्य हुआ, जहाँ चंद गुप्तचरों ने उसकी हत्या कर दी थी। अपने शरणागत आये हिम्मत सिंह रौतेला की हत्या से रोहिला सरदार अली मुहम्मद क्रोधित हो गया और कुमाऊँ पर आक्रमण कर दिया।

3- आर्थिक कारण-

 रोहिला सरदार को आंवला क्षेत्र में अवध के नवाब और दिल्ली के मुगल बादशाह मुहम्मद शाह के समक्ष अपने प्रभाव को बनाये रखने हेतु धन की आवश्यकता थी। इसलिए रोहिला सेना ने अल्मोड़ा और उसके आस पास के मंदिरों को लूटा। कुमाऊँ के मंदिर धन-सम्पदा के ऐसे केन्द्र थे, जहाँ से चंद राजा समय-समय पर ऋण लेते रहते थे। 

4- सामरिक कारण-

आंवला का रोहिला सरदार अली मुहम्मद अवध के नवाब सफदर जंग और दिल्ली के बादशाह मुहम्मद शाह से सशंकित था। वह अपने राज सत्ता को सुरक्षित रखने हेतु कुमाऊँ की पहाड़ियों पर अधिकार करना चाहता था। अपनी सामरिक स्थिति को सशक्त करने हेतु उसने एक नहीं दो बार कुमाऊँ राज्य पर आक्रमण किया और असफल हुआ।


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