जाह्नवी देवी नौला

  जाह्नवी देवी नौला -

    गंगोलीहाट का जाह्नवी देवी नौला उत्तराखण्ड के प्राचीन अमूल्य धरोहरों में से एक है। स्थानीय लोग जाह्नवी देवी नौला को ‘जानदेवी’ नौला कहते हैं। यह नौला पर्वतीय स्थापत्य कला का एक उत्कृष्ट उदाहरण है। उत्तराखण्ड का कुमाऊँ क्षेत्र प्राचीन मंदिरों के साथ-साथ नौला स्थापत्य के लिए भी प्रसिद्ध है। प्राचीन काल में मंदिरों के आस पास जलापूर्ति हेतु जलकुण्ड और नौला स्थापत्य का विकास हुआ। नदी या लघु जल धाराओं के निकटवर्ती मंदिरों में जलकुण्ड तथा भूमिगत जल स्रोतों पर नौलों को निर्मित किया जाता था। जाह्नवी देवी नौला भूमिगत जल स्रोत का उदाहरण है। जबकि कुमाऊँ के प्राचीन मंदिरों जैसे जागेश्वर और वृद्ध-भुवनेश्वर मंदिर में जलकुण्ड निर्मित है। इसके अतिरिक्त प्राचीन हाट (बाजार) और विशेषतः कुमाऊँ के पर्वतीय क्षेत्र के गांव-गांव में पेयजल आपूर्ति हेतु नौला प्रमुख साधन था। जाह्नवी देवी नौला को प्राचीन गंगोली राज्य के हाट के निकट ही स्थापित किया था। गंगोली राज्य के हाट को अब गंगोलीहाट कहा जाता है।

जाह्नवी देवी नौला 

नौला स्थापत्य शैली-

    उत्तराखण्ड में हाट संस्कृति की प्राचीनता को कत्यूरी काल से संबद्ध किया जाता है। इस काल के प्रमुख हाट- बाड़ाहाट, तैलीहाट, सैलीहाट, द्वाराहाट, गंगोलीहाट, डीडीहाट और बगड़ीहाट थे। इस कालखण्ड में मंदिर स्थापत्य की जिस पर्वतीय शैली का विकास हुआ, उसे ही ‘कत्यूरी शैली’ कहते हैं। इस शैली को कुमाऊँ में कत्यूरियों के परवर्ती चन्द शासकों ने भी अपनाया। चंद राजाओं ने कत्यूरियों द्वारा निर्मित मंदिरों और नौलों के जीर्णांद्धार में विशेष रुचि दिखाई। स्थापत्य की इस पर्वतीय शैली में स्थानीय प्रस्तरों का ही प्रयोग किया गया। मंदिर-नौलों के स्तम्भों और प्रस्तर शहतीर हेतु विशाल शिलाओं को उपयोग में लाया गया, जो कत्यूरी शैली की मुख्य विशेषताओं में एक है। जाह्नवी देवी नौला को निर्मित करने में लगभग 8 फीट लम्बे शिलाओं को प्रयुक्त किया गया। गंगोली के पुंगेश्वर नौले में 13 फीट लम्बे विशाल प्रस्तर के शहतीर को प्रयुक्त किया गया है। स्तम्भों और विशाल शहतीरों पर आलेखन, पुष्प, पत्र, देवमूर्ति और देव चिह्नों को उकेरना कत्यूरी शैली की मुख्य विशेषता थी। 

    उत्तराखण्ड की स्थानीय कत्यूरी स्थापत्य शैली का चरमोत्कर्ष काल आठवीं से तेरहवीं शताब्दी तक मान्य है। इस कालखण्ड के पश्चात भी कुमाऊँ के चंद राजाओं ने कत्यूरी शैली को जीवन्त रखने का प्रयास किया। उनके कालखण्ड में निर्मित नौले चम्पावत से अल्मोड़ा तक के विस्तृत क्षेत्र में आज भी जीवन्त हैं। चम्पावत में नागनौला, एक हथिया नौला, रानी का नौला तथा मानेश्वर, बालेश्वर, घटकू, हिडिंबा आदि मंदिरों के निकटवर्ती नौले चंद कालीन हैं। अल्मोड़ा में चंद राजाओं ने सैकड़ों नौले निर्मित किये, लेकिन श्री सिद्ध नौला विशेष है, जहाँ चंद रानियां स्नान किया करती थीं। मंदिर स्थापत्य की दृष्टि से जहाँ कत्यूरी कालखण्ड उत्तराखण्ड का स्वर्ण युग था। वहीं कुमाऊँ में चंद काल नौला स्थापत्य का स्वर्ण काल था। अल्मोड़ा का श्री सिद्ध नौला रहस्यमयी सुरंग युक्त और चम्पावत का एक हथिया नौला अद्भुत, तो गंगोलीहाट का जाह्नवी देवी नौला स्थापत्य कला की दृष्टि से अद्वितीय है। 

जाह्नवी देवी नौला का निर्मिता-

    यह नौला 29° 39’ 21’’ उत्तरी अक्षांश और 80° 02’ 33’’ पूर्वी देशांतर रेखा तथा समुद्र सतह से 1703 मीटर की ऊँचाई पर स्थित है। गंगोलीहाट से महाकाली मंदिर (हाट कालिका) हेतु पैदल मार्ग पर लगभग 200 मीटर दूरी पर जाह्नवी देवी नौला एक प्राचीन मंदिर समूह के प्रांगण में है। इस मंदिर समूह को स्थानीय लोग जानदेवी मंदिर और राम मंदिर समूह भी कहते हैं। यह 11 मंदिरों का समूह है, जिनमें 6 मंदिर कत्यूरी शैली में निर्मित है। इस मंदिर समूह के दक्षिण-पूर्व भाग में जाह्नवी देवी नौला है, जो कत्यूरी शैली में निर्मित है। यह नौला प्राचीन गंगोली राज्य का अभिलेख युक्त एक मात्र नौला है, जिसे कत्यूरी राजा रामचन्द्रदेव ने बनवाया था। इस नौला अभिलेख के अनुसार राजा रामचन्द्रदेव ने सन् 1264 ई. से सन् 1275 ई. तक गंगोली पर शासन किया और इस भव्य नौले का निर्माण करवाया। इसलिए इस नौला परिसर में स्थित मंदिर समूह को राम मंदिर समूह कहते हैं।

राम मंदिर समूह का एक मंदिर 


जाह्नवी देवी नौला : नामकरण :- 

कुमाउनी भाषा में जिस प्रकार से रावत को रौत, गंगा को गंग, गंगावली को गंगोली और पंडित को पंत कहा गया, इसी प्रकार से जाह्नवी देवी को जानदेवी कहा गया। इस प्राचीन नौले के जल स्रोत को स्थानीय लोग गुप्त गंगा कहते हैं। अतः गंगा के एक पर्यायवाची जाह्नवी के नाम से इस नौले का नामकरण किया गया। गंगा के अनेक पर्यायवाची हैं लेकिन जाह्नवी नाम ही क्यों ? यह नौला परिसर जंगम साधुओं का अखाड़ा रहा था। एक जंगम बाबा लक्ष्मण, जिन्हें जाह्नवी देवी मंदिर परिसर में ही समाधि दी गयी है और उसके ऊपर एक मंदिर निर्मित है। इस समाधि मंदिर के वाह्य प्राचीर पर एक लेख युक्त प्रस्तर लगाया गया है, जिसकी पांचवीं पंक्ति के अंत में ’जान्हवी’ शब्द लिखा गया है। अर्थात यह एक प्रामाणिक प्रस्तर लेख है, जिसमें जाह्नवी नाम उत्कीर्ण है। अतः जंगम साधुओं ने ज अक्षर से आरंभ होने वाले गंगा के पर्यायवाची शब्द ‘जाह्नवी’ से इस नौले का नामकरण किया।

स्थापत्य-

      जाह्नवी देवी नौला स्थापत्य की दृष्टि से उच्च कोटि का है। स्थापत्य की दृष्टि से इस प्राचीन नौले को अग्रलिखित भागों में विभाजित कर सकते हैं-

1- वापिका

2- वापिका कक्ष की भीतरी प्राचीर

3- अंतः छत

4- अर्द्ध-मण्डप

वापिका :-

     जाह्नवी देवी नौला दक्षिण-पूर्वाभिमुखी है। इसका आकार सामान्य गांव के नौलों से बड़ा और वाह्य निरीक्षण में यह एक कक्ष की भाँति दिखलाई पड़ता है, जिसकी कुल ऊँचाई लगभग 9 1⁄2 फीट है। वाह्य छत को कंक्रीट-सीमेंट से सशक्त बनाने का प्रयास किया गया है। इस कंक्रीट छत के अतिरिक्त सम्पूर्ण नौला प्राचीन शिलाओं से निर्मित है। नौले में प्रवेश द्वार चौखटा प्रस्तरों से निर्मित है। सामान्यतः द्वार लगाने की परम्परा नौला स्थापत्य का अंग नहीं था। वर्तमान में लौह धातु की छड़ों निर्मित एक पारदर्शी द्वार वहाँ लगा दिया गया है। 

    नौला का मुख्य भाग जलकुण्ड होता है, जिसे वापिका कहते हैं। वापिका नौले के प्रवेश द्वार चौखटा से भीतर की ओर गहराई वाला भाग होता है, जिसमें भूमिगत जल संग्रहित होता रहता है। इस नौले की वापिका की गहराई 1 1⁄2 फीट है। अर्थात जलकुण्ड की गहराई मात्र 45 सेमी है। इस नौले की वापिका एक वर्गाकार जलकुण्ड है, जिसके तल की एक भुजा 4 फीट है। अर्थात वापिका तल का क्षेत्रफल 14400 वर्ग सेमी है। इस आधार पर इस वापिका का आयतन 648000 घन सेमी हुआ। या इस वापिका की जल संग्रह क्षमता 648 लीटर है। लेकिन इस नौले की वापिका घनाभाकार के स्थान पर एक लघु सीढ़ीदार जलकुण्ड की तरह है, जिसके अंतः भाग में चारों ओर 3 1⁄4 इंच (08.25 सेमी) चौड़ी चार-चार सीढ़ियां निर्मित हैं। प्रत्येक सीढ़ी की ऊँचाई लगभग 09 सेमी है। अतः वापिका से तल से पहली सीढ़ी तक इस नौले की जल संग्रह क्षमता मात्र 129.6 लीटर है। तल से दूसरी, तीसरी और चौथी सीढ़ी तक नौले की जल संग्रह क्षमता क्रमशः 297.29 लीटर, 507.97 लीटर तथा 766.54 लीटर है। तल से नौला प्रवेश द्वार चौखटा तक नौले की कुल जल संग्रह क्षमता 1078 लीटर है।

वापिका कक्ष :-

     जाह्नवी देवी नौला की वापिका तल जहाँ 4 गुणा 4 फीट का है, वहीं प्रवेश द्वार चौखटा सतह पर इसकी माप 6.2 गुणा 6.2 फीट है। अर्थात वापिका कक्ष की माप 6.2 गुणा 6.2 फीट है। प्रवेश द्वार चौखटा से नौले के गुम्बद तक तक कुल ऊँचाई 9 फीट है, जिसमें गुम्बद की ऊँचाई 3 1⁄2 फीट भी सम्मिलित है। नौले का यह भाग तीन ओर से दीवारों से घिरा है, जिसका का प्रवेश द्वार चौखटा 5 1⁄2  फीट ऊँचा तथा 5 1⁄2  फीट चौड़ा है। प्रवेश द्वार चौखटा के ऊपर 8 फीट 1 इंच लम्बा तथा 10 इंच मोटाई माप का एक शिलाखण्ड है। वापिका कक्ष के भीतरी तीनों दीवारों के मध्य भाग में एक-एक गवाक्ष है, जिनके भीतर मूर्तियां को स्थापित किया गया है। प्रवेश द्वार चौखटा के ठीक सामने की दीवार पर ललित मुद्रा में उमा-महेश, दायें दीवार पर दोनों हाथों में पद्म लिए स्थानक मुद्रा में विष्णु तथा बायें दीवार पर स्थानक मुद्रा में उमा-महेश की भग्न मूर्ति स्थापित है। ये तीनों मूर्तियां जल की सतह से 1 1⁄2  फीट की ऊँचाई पर स्थापित हैं। 

अतः छत या नौले का गुम्बद :-

    नौले की अतः छत की कुल ऊँचाई 10 1⁄2 फीट है, जिसमें नौला प्रवेश द्वार चौखटा की ऊँचाई 5  1⁄2 फीट, चौखटा से नौले की गहराई 1 1⁄2 फीट तथा अलंकृत आलेखन युक्त गुम्बद की ऊँचाई 3 1⁄2 फीट है। नौले का अतः छत प्राचीन शिल्प कला की उन्नत दशा को प्रकट करता है। गुम्बद का आलेखन अद्वितीय है, जिसे पांच वृत्ताकार प्रस्तर के घेरों (छल्लों) तथा एक वृत्ताकार प्रस्तर ढक्कन से निर्मित किया गया है। ये पांच वृत्ताकार घेरे एक से अधिक प्रस्तरों को संयुक्त कर निर्मित किये गये हैं। प्रत्येक वृत्ताकार घेरे में 8 त्रिभुजों की त्रिवीमीय आकृति निर्मित की गई है। गुम्बद के 5 वृत्ताकार घेरे नीचे से ऊपर की ओर घटते परिधि क्रम में जुड़े हैं और हर वृत्ताकार घेरे में 8 त्रिवीमीय त्रिभुज एक निश्चित दूरी के अनुपात में हैं। इन पांच वृत्ताकार घेरों की मोटाई भी उत्तरोत्तर घटते क्रम में हैं। इसी प्रकार वृत्ताकार घेरों के घटते क्रमानुपात में त्रिभुजों की आकृति भी उत्तरोत्तर घटते क्रम में है। लेकिन प्रत्येक घेरे में 8 ही त्रिभुज हैं। अंतिम वृत्ताकार घेरे के ऊपर एक अलंकृत वृत्ताकार ढक्कन लगा है, जिसका व्यास 1 1⁄2  फीट है। इस वृत्ताकार ढक्कन में भी 8 त्रिभुजों को इस प्रकार उकेरा गया है कि उसके मध्य भाग में अष्ट-चक्राकार आकृत का दृश्य उभरता है।

जाह्नवी देवी नौला की अतः छत

अर्द्ध-मण्डप :-

    जाह्नवी नौला के वर्गाकार आधार वाले वापिका कक्ष के बाहर अलंकृत छत व दो स्तम्भों वाला अर्द्ध-मण्डप है, जिसके दायें दीवार में लेखयुक्त शिलापट्ट लगा हुआ है। इस अर्द्ध-मण्डप की चौड़ाई मात्र 3 1⁄2 फीट है। लेकिन लम्बाई 15 1⁄2 फीट तथा ऊँचाई 6 1⁄2 फीट है। 3 1⁄2 फीट चौड़े छत में आलेखन युक्त 5 पत्थर निश्चित दूरी पर स्थापित हैं। प्रत्येक प्रस्तर की माप समान है। अर्द्ध-मण्डप की छत पर लगाये गये आलेखन युक्त एक चौकोर प्रस्तर की लम्बाई 38 इंच, चौड़ाई 28 इंच तथा मोटाई 1 1⁄2 इंच है। इस नौले के अर्द्ध-मण्डप के निर्माण में पैमाने का सर्वोत्तम प्रयोग किया गया है। इसके बायें पार्श्व की प्राचीर की चौड़ाई 42 इंच तथा दायें पार्श्व की प्राचीर की चौड़ाई 44 इंच है। लेकिन अर्द्ध-मण्डप की पश्चिमी प्राचीर की माप सटीक है। इस प्राचीर को नौला द्वार चौखटा दो समान भागों (5-5 फीट) में विभाजित करता है। नौला द्वार चौखटा की चौड़ाई 5 1⁄2 फीट है, जिसके दोनों पार्श्व प्राचीरों में एक-एक गवाक्ष निर्मित है। चौखटा के आधार से ऊपर दोनों ओर अर्द्ध-मण्डप 1 1⁄2 फीट ऊँचे चबूतरे पर बनाया गया है। 

अर्द्ध-मण्डप में दो प्रस्तर स्तम्भ प्रयुक्त किये गये हैं, जो समान ऊँचाई और समान आकृति के हैं। प्रत्येक स्तम्भ का धड़ 4 1⁄3 फीट ऊँचा है, जो घनाभाकार, बेलनाकार तथा अष्ट-भुजाकार ज्यामितीय आकृति में विभाजित है। स्तम्भ के घनाभाकार भाग का परिमाप 48 इंच तथा बेलनाकार भाग की गोलाई 34 इंच है। प्रत्येक स्तम्भ का आधार एक वर्गाकार चबूतरा है, जिसकी माप 1 1⁄3 फीट गुणा 1 1⁄3 फीट है। प्रत्येक स्तम्भ के शीर्ष पर पर कमलाकार चौकी है, जिसकी ऊँचाई 11 इंच है। अतः धड़, अधार चबूतरा और चौकी सहित स्तम्भ की कुल ऊँचाई 6 1⁄2 फीट है। स्तम्भों को शिल्प कला की दृष्टि से देखें तो, स्तम्भ के आधार पर चबूतरा, मुख्य स्तम्भ या धड़ के तीन भिन्न-भिन्न आकृति की ज्यामितीय खण्ड तथा सबसे ऊपरी भाग में कमलाकार चौकी है। मुख्य स्तम्भ या धड़ का सबसे नीचे का भाग घनाभाकार है, जिसके ऊपरी भाग में त्रिभुज जैसी आकृतियां तराशी गईं हैं। मुख्य स्तम्भ के मध्य भाग को अष्ट-भुजाकार आकृति में तराशी गई है। जबकि मुख्य स्तम्भ का सबसे ऊपरी भाग बेलनाकार है, जिसके ऊपर ही कमलाकार चौकी है। चौकी का आधार वृत्ताकार है और जिससे संबद्ध चार भुजाएं इस पटल में कमल जैसी आकृति सुदृश्य करतीं हैं।

दो स्तम्भों वाला अर्द्ध-मण्ड



अर्द्ध-मण्डप के  छत का अलंकृत प्रस्तर


अर्द्ध-मण्डप  का स्तम्भ


     

        


   


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