राजा कल्याणचंददेव के ताम्रपत्र

 राजा कल्याणचंददेव के ताम्रपत्र

राजा कल्याणचंददेव के ताम्रपत्र कुमाऊँ में विस्तृत चंद राज्य के प्रमाण को प्रस्तुत करते हैं। इस राजा के शासन काल में चंद राज्य की राजधानी चंपावत से अल्मोड़ा स्थानान्तरित हुई। अन्य चंद राजाओं की भाँति राजा कल्याणचंददेव के ताम्रपत्र भी स्थानीय कुमाउनी भाषा में उत्कीर्ण हैं। जबकि उत्तराखण्ड के पौरव और कार्तिकेयपुर राजवंश के शासकों ने अपने ताम्रपत्र संस्कृत भाषा में निर्गत किये थे। जहाँ कार्तिकेयपुर और पौरव ताम्रपत्रों में राज्य संवत् तिथि का उल्लेख किया गया, वहीं चंद शासकों के निर्गत ताम्रपत्रों में विक्रम और शक संवत् का प्रयोग किया गया है। यही कारण है कि चंद शासकों के शासन काल को निर्धारित करने में उनके द्वारा निर्गत ताम्रपत्र सहायक सिद्ध हुए हैं। राजा कल्याणचंददेव के ताम्रपत्र भी उसके शासन काल को सन् 1545 से 1568 ई. मध्य निर्धारित करते हैं। जबकि कुमाऊँ इतिहास पर कार्य करने वाले विद्वानों और इतिहासकारों ने इस चंद राजा के शासन काल को सन् 1555 से 1568 के मध्य निर्धारित किया था। पिथौरागढ़ के भेटा से प्राप्त ताम्रपत्र में क्रमशः शाके 1467 और 1602 विक्रम संवत् तथा महाराजाधिराज कल्याणचंद का उल्लेख किया गया है। इस ताम्रपत्र में उसके पिता भीष्मचंद का नाम भी उत्कीर्ण है। 

👉भेटा (कलापानि गाड़) ताम्रपत्र-

ऊँ स्वस्ति श्री साके 1467 संवत 1602 वर्ष जेठ

सुदि 10 गुरूदिन दसहरा पुण्यकाल महाराजा

धिराज स्री कल्याणचंद्र देव ले संकल्पपूर्वक जीर्णों

धार करि राजा भीष्मचंद्र की दिनी बिसा 6 भटा का मद्वछ

राम मधा कलापानि का दिना नरि पाडे ले पया एसा भुमि ले 

गति घर कुड़ि बन छोड़ि गाड़ घट लेक इजर आकास को

ढिठो पातालाक निधि गडिली पेटिली नाट नटयाली घोडालो कु

कुरालो स्व पहरि वजनिया सर्वकर अकर सर्वद्वत विवध (विशुध)

करि राजा कल्यन चंद्र की संतति ले भुचाउंनि नरि पाडे कि सं

तति ले भुचनि प्रधान बसु तेव्वाडि विद्येत साखि महाराज कुमा

र कसुच (चं) द बिसु गुसाइ कर्न रौतान सुतान मौनि पव (र्व) त बोह

रो भाउ सुभडारि महराज राउत पुर्खु बिनि बिष्ट भोज

तडागि गनेस चौधरि कुमु कार्की ससारू बोहरा जोगु फुर

त्याल सया महरा मनुमात महर सुर्तान राउल मोरू खडाइत

पुदु व्वदिया (वल्दिया) ऊत खिऊ राज सेटि ग्यान धानिक लिखितं

पुर्खु जोइसि कडारितं सुगु साऊ।

प्राप्ति स्थान- श्री लक्ष्मीदत्त पाण्डे (अब स्वर्गीय) भेटा-भौड़ी निवासी, पिथौरागढ़।

हिन्दी भाषान्तर-

ऊँ स्वस्ति श्री शाके 1467 संवत् 1602 वर्ष के ज्येष्ठ मास के

सुदी 10 गुरुवार, दसहरा पुण्यकाल में महाराजा-

धिराज श्री कल्याणचंद्र देव ने संकल्पपूर्वक जीर्णो-

द्धार करके राजा भीष्मचंद्र की दी हुई विशा 6 भेटा के 0 0 (अस्पष्ट)

0 0 मध्ये कलापानि के दे दिये, नरि पाडे ने पा ली, इस भूमि से

लगी हुई घर-कूड़ि, वन को छोड़कर, गाड़ (लघु नदी), पनचक्की, बांज का वन, इजर, आकाश की

गिरी वस्तु, भूमि में गड़ी सम्पत्ति, (सहित अन्य सम्पत्तियां), नाठ-नाठयाली ( उसी को 

देते हुए), घोड़ों, कुत्तों के लिए, लिए जाने वाले तथा पहरी, वजनिया के सारे करों से मुक्त

किया और सारे विवादों से विशुद्ध करके राजा कल्याणचंद्र की संतान ने भोग करवाना

चाहिए, नरि पांडे की सन्तान ने 

भोगना चाहिए। प्रधान वसु तेवाड़ि की उपस्थिति में साक्षी महाराजकुमा-

र कसुचंद, विसु गुसाई, कर्न रौतान, सुर्तान मौनी, पर्वत बोह-

रो, भाउ सुभडारी, महराज राउत, पुर्खु, बिनि बिष्ट, भोग

ंतड़ागि, गनेस चौधरी, कुमु कार्की, ससारू बोहरा,  जोगु फुर-

त्याल, सया महरा, मनुमात महर, सुर्तान राउल, मोरू खड़ायत,

पुदु व्वदिया (वल्दिया), ऊत (?) खिवराज सेटि, ग्यान धानिक, लिखा गया- 

पुर्खु जोइसि द्वारा, सुगु साऊ ने उकेरा।।

ताम्रपत्र का संक्षिप्त सार-

1- निर्गत करने की तिथि- गुरुवार, दशहरा पर्व, 31 मई, 1545 ई. (शाके 1467 संवत् 1602 वर्ष के ज्येष्ठ मास के सुदी 10 गुरुवार, दसहरा )

2- ताम्रपत्र निर्गत करने वाला शासक- महाराजाधिराज कल्याणचंद।

3- भूमिदान प्राप्त करने वाला व्यक्ति एवं स्थान- नरि पाण्डे एवं कलापानि (पिथौरागढ़)। यह दानपत्र सोर पर चंद शासन की पुष्टि करता है।

4- दान भूमि करों से मुक्त- घोडालो (राजा के घोड़ों हेतु कर), कुकुरालो (राजा कुत्तों हेतु कर), पहरि (राज्य के पहरेदारों हेतु कर) और वजनिया(राज दरबार में बाजा बजाने वाला के लिए कर) आदि करों से मुक्त। 

5- साक्षी- महाराजकुमार कसुचंद, (यहाँ पर कसुचंद के स्थान पर रुद्रचंद होना चाहिए था।) विसु गुसाई, कर्न रौतान (कर्ण राउत या रावत), सुर्तान मौनी, पर्वत बोहरो ( पर्वत बोहरा), भाउ सुभडारी (भाउसु भण्डारी), महराज राउत (महाराज रावत), पुर्खु, बिनि बिष्ट, भोग तड़ागि, गनेस चौधरी (गणेश चौधरी), कुमु कार्की, ससारू बोहरा, जोगु फुरत्याल (जोगु फरत्याल), सया महरा, मनुमात महर, सुर्तान राउल (सुर्तान रावल), मोरू खड़ायत, पुदु व्वदिया (वल्दिया), ऊत (?) खिवराज सेटि (शिवराज सेठी), ग्यान धानिक (ज्ञान धानिक) आदि इस ताम्रपत्र के साक्षी थे।

6- लेखक एवं टंकणकर्ता- इस ताम्रपत्र के लेखक एवं टंकणकर्ता क्रमशः पुर्खु जोइसि (पुरुषोत्तम जोशी) एवं सुगु साऊ थे।।

👉गौंछ ताम्रपत्र-

आदेस स्विस्ति साके 1478 समये म (सा) सानि मार्गसि (र) 4 गते सो

म वासरे अमाव (वा) स्या (यां) तिथे (थौ) विस (सा) का नक्षतेरे (त्रे) र (रा) जा धीरा

ज कल्य (ल्या) न च (चं) द ले मयाचितो इ गो (गौं) छ संकल्प करी

दिनु सुर्ज ग्र (ह) न मडल वसि दिनु रतनाकर पाड (डे) ले

पायो सर्वकर अकर सर्वदोष विसुद पानी सो ध धु (द्वंद्व)

र आ । नीकास करी पायो गै (गौं) छ लागो गाड को बगड ले क।

0 इजर पायो का  डो वा (पा) वो प्र ध (धा) न बैकुठ बिष्ट स (सा) कि राइसि

0 बिष्ट चारबुडा छइ गौरा। मन म (ह) र सर खडाइत 0 क 0

0 0 ठि धामी ले खत   वसु जोइसि स्वदत्त वा परदत्ते व शुभं

प्राप्ति स्थान- श्री षष्टी बल्लभ पांडे, गौंछ (खर्कदेश), पिथौरागढ़।

हिन्दी भाषान्तर-

आदेश, स्वस्ति साके 1478 समय, मार्गशीर्ष (अगहन) मास के 4 गते सो-

मवार की अमावस्या की तिथि के अवसर पर बिशाका नक्षत्र में, राजाधिरा-

ज कल्याणचंद ने प्रसन्न होकर गौंछ गांव संकल्प करके

दे दिया। सूर्य ग्रहण (मण्डल में ग्रहण लगा था) के अवसर पर दिया, रतनाकर पांडे ने

पाया। समस्त करों से मुक्त, सभी दोषों से विशुद्ध किया, पाना चाहिए। वह ?

। मुक्त करके पा लिया। गौंछ (गांव) से लगी लघुनदी की तटवर्ती भूमि (बगड)़,

0 इजर व कांडो (चट्टानी भाग) पायेगा (उसी का हो गया), प्रधान बैकुंठ बिष्ट, साक्षी राइसिं

बिष्ट, चार बूढ़ा, छइ गौरा, मन महर, सर खड़ायत 0 क 0

0 ठि धामी। बसु जोइसि ने लिखा। व्यास कृत भूमिदान की महत्ता, कल्याण हो।

ताम्रपत्र का संक्षिप्त सार-

1- निर्गत करने की तिथि- सोमवार, अमावस्या और सूर्यग्रहण, 12 नवम्बर, 1556 ई. (शाके 1478 समय, मार्गशीर्ष (अगहन) मास के 4 गते सोमवार की अमावस्या )

2- ताम्रपत्र निर्गत करने वाला शासक- राजाधिराज कल्याणचंद।

3- भूमिदान प्राप्त करने वाला व्यक्ति एवं स्थान- रत्नाकर पाण्डे एवं गौंछ (पिथौरागढ़)। यह दानपत्र भी सोर पर चंद शासन की पुष्टि करता है।

4- दान भूमि करों से मुक्त- समस्त करों से मुक्त। 

5- साक्षी- राइसि 0 बिष्ट (राइसि बिष्ट), चारबुडा (चार बूढ़ा), छइ गौरा (छः गौर्या)। मन म (ह) र (मन महर), सर खडाइत (सर खड़ायत), 0 क 0 0 0 ठि धामी (अस्पष्ट) आदि इस ताम्रपत्र के साक्षी थे।

टिप्पणी- चार बूढ़- चार प्रतिष्ठित वरिष्ठ मुखिया- कार्की, बोरा, चौधरी, तड़ागी (चम्पावत)।

छइ गौरा- सोर के छः क्षत्रिय कुल- महर, सौन, वल्दिया, सेठी, खड़ायत, रावल। 

6- लेखक एवं टंकणकर्ता- इस ताम्रपत्र के लेखक वसु जोइसि (वसु जोशी) थे। जबकि इस ताम्रपत्र में टंकणकर्ता का नाम उत्कीर्ण नहीं किया गया है।

👉जाखपंत ताम्रपत्र-

कृष्ण सही कटार राजचिह्न

ऊँ श्री शाके 1482 समये मासानी बइसाख सुदी सुदी 9 गते गुरुवासरे राम

नवमी तिथौ श्री महाराजाधिराज कन्याणचन्दले मयाचितै संकल्प करि

दीनी जाख कनारी सुद्धा मनी पन्त संगज्यालले पाइ सर्वकर अकर

सर्वदोष विसुद्ध करिपाइ गाड़ की बगड़ी लेक की इजरी पंथ की  छ भूमि

पाई पत्र साखी राजकुमार रुद्रचन्द्र विद्यते प्रधान साहु खिम

कार्की विप्र (?) चारै बूढा दइ गौर्या गंगालो विसुंगा सक्तू कूरं निदा 0

बिनि बिष्ट मिष्ट गा उ (मु) खल गौडया बसी पाडे मन म ह र निडुभ्या मर

जितु खडाइत थरकोटी ऐगुराल खिउराज म (ह) र मरख सिटी 40 शइ

द्योली खहुकी लिखीतं पुरु जोशी - स्वदत्तां पर दत्तां वा यो हरेच्च वसुधरा

षष्ठीर्वर्स सहस्रणी बिष्टयां जायते कृमी।।

प्राप्ति स्थान- श्री पद्पादत्त पंत, लुन्ठ्यूड़ा, पिथौरागढ़।


हिन्दी भाषान्तर-

ऊँ श्री शाके 1482 समय में वैशाख (बइसाख) मास, सुदी 9 गते, गुरुवार, राम-

नवमी तिथि को श्री महाराजधिराज कल्याण चन्द्र ने प्रसन्न होकर संकल्प करके

जाख गांव का कनारी (गांव) सहित दे दिया, मनीपन्त संगज्याल ने पाया, समस्त करों से मुक्त,

समस्त दोषों से विशुद्ध करके पाया (दे दिया)। गाड़ के बगड़ की लेख के इजर की

भूमि अब पंत की है, यह भूमि उसने पा ली। पत्र के साक्षी राजकुमार रुद्रचन्द्र की

उपस्थिति में, प्रधान साहु खिम कार्की, विप्र (?) चारों बूढ़ा, छइ गौर्या, गंगालो,

विसुंगा, सक्तू कुंवर निदा 0

विनि विष्ट 0 मि (बि) ट गाउ (मु) खल गौड़या, बसी पांडे, मन म (ह) र रिडु

म्मा ,? म ह र

जितु खडाइत, थरकोटी, ऐगुराल, खिउराज म (ह) र मरख सिटी (सेठी) 10 सौ

घोली (?) खडुकी, लिखा गया पुरु जोशी द्वारा- व्यासकृत भूमिदान महत्ता।

ताम्रपत्र का संक्षिप्त सार-

1- निर्गत करने की तिथि- गुरुवार, राम नवमी, 14 अप्रैल, 1560 ई. ( शाके 1482 समय में वैशाख (बइसाख) मास, सुदी 9 गते, गुरुवार, राम नवमी )। 

2- ताम्रपत्र निर्गत करने वाला शासक- महाराजाधिराज कल्याणचंद।

3- भूमिदान प्राप्त करने वाला व्यक्ति एवं स्थान- मनी पंत एवं जाख कनारी (पिथौरागढ़)। यह दानपत्र भी सोर पर चंद शासन की पुष्टि करता है।

4- दान भूमि करों से मुक्त- समस्त करों से मुक्त। 

5- साक्षी- ताम्रपत्र के साक्षी राजकुमार रुद्रचन्द्र, प्रधान साहु खिम कार्की, विप्र (?) चारों बूढ़ा, छइ गौर्या, गंगालो, विसुंगा, विनि विष्ट,  मि (बि) ट गाउ (मु) खल गौड़या ( संभवतः गौड़), बसी पांडे (वंशी पाण्डे), मन म (ह) र (मन महर), रिडुम्मा ,? म ह र (रिडुम्मा महर), जितु खडाइत (जितु खड़ायत), थरकोटी, ऐगुराल, खिउराज म (ह) र (शिवराज महर), मरख सिटी (सेठी) आदि इस ताम्रपत्र के साक्षी थे।

6- लेखक एवं टंकणकर्ता- इस ताम्रपत्र के लेखक एवं टंकणकर्ता क्रमशः पुर्खु जोइसि (पुरुषोत्तम जोशी) एवं सुगु साऊ थे।।

टिप्पणी-

1- चार बूढ़ा : चंद राज्य के चार प्रमुख सैन्य परामर्शदाता- कार्की, बोरा, तड़गी, चौधरी।

2- छइ गौर्या या छः विष्ट- सोर के चन्द कालीन प्रमुख छः घराने।

3- गंगालो- गंगोल पट्टी वाले मौनी क्षत्रिय (सम्भवतः)। या गंगोली राज्य से संबद्ध।

4- बिसुंगा- बिसुं की पांच प्रमुख जातियां के मुखिया- मारा, फरत्याल, ंढेक, कराइत, देव।


डॉ. नरसिंह


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